अगस्त २००४
जगत में इस तरह रहें हम कि
किसी को दुःख न पहुंचाएं, अज्ञान के कारण हम कभी-कभी अन्यों की भलाई की कामना रखते
हुए भी उनको पीड़ा पहुँचा रहे होते हैं, हमारा अहम् हमें सच्चाई से दूर रखता है
अथवा तो हममें इतनी योग्यता होती नहीं कि हम किसी पर अपना प्रेमपूर्ण अधिकार ही
जतला सकें, तो सबसे अच्छा यही है कि हम मौन का आश्रय लें, कहने से अच्छा करना है,
हमारे शब्दों से ज्यादा असर हमारे व्यवहार का अन्यों पर पड़ता है, प्रेम यदि हृदय
में है तो उसे कहकर जताने की जरूरत नहीं, वह मौन से ज्यादा अच्छी तरह से व्यक्त होता
है. हम सभी को प्रेम, आनंद व शांति की आवश्यकता है, क्योंकि वही हमारा मूल स्वरूप
है, एक बार उसका अनुभव हो जाने के बाद जीवन एक क्रीड़ा स्थली हो जाता है. जिस तरह
अतीत का अब हमारे लिए कोई महत्व नहीं वैसे ही एक दिन वर्तमान भी हो जाने वाला है,
हम उसे खो दें, इसके पूर्व हमें भरपूर जीना है.
.बढ़िया विचार मंथन करती पोस्ट .वाह !वर्तमान की प्रासंगिकता .भूत तो भूत हो चुका भविष्य सिर्फ अनुमेय है और अनुमान लगाना खतरे से खाली नहीं होता है .इसलिए वर्तमान में जियो .जीने दो .नियम निष्ठ जीवन अपने स्वभाव में स्थित होकर .आत्म स्वरूप को पहचान कर .
ReplyDeleteॐ शान्ति .
.बढ़िया विचार मंथन करती पोस्ट .वाह !वर्तमान की प्रासंगिकता .भूत तो भूत हो चुका भविष्य सिर्फ अनुमेय है और अनुमान लगाना खतरे से खाली नहीं होता है .इसलिए वर्तमान में जियो .जीने दो .नियम निष्ठ जीवन अपने स्वभाव में स्थित होकर .आत्म स्वरूप को पहचान कर .
ReplyDeleteॐ शान्ति .
प्रेम यदि हृदय में है तो उसे कहकर जताने की जरूरत नहीं, वह मौन से ज्यादा अच्छी तरह से व्यक्त होता है.
ReplyDeleteप्रेम यदि हृदय में है तो उसे कहकर जताने की जरूरत नहीं,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: दीदार होता है,
सही है ..
ReplyDeleteसंगीता जी, राहुल जी, धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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