Friday, August 15, 2014

सीमित से सीमित ही मिलता

जनवरी २००७ 
पतंजलि के अनुसार चित्त में जो वृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं उनके पांच प्रकार हैं, प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, स्मृति और निद्रा. प्रमाण का अर्थ है निश्चित ज्ञान, जो हमने आज तक अनूभूत किया है उसी के आधार पर जीवन को देखने की दृष्टि, यानि सीमित जानकारी. जब हम निद्रा में होते हैं, स्वप्न के रूप में मन चलता रहता है, गहन निद्रा में मन खो जाता है पर तब हम स्वयं को नहीं जानते. विपर्यय का अर्थ है विपरीत ज्ञान. प्रमाद वश जब हम नित्य-अनित्य व पवित्र-अपवित्र में भेद नहीं कर पाते, कुछ को कुछ समझ बैठते हैं यही विपर्यय है. विकल्प का अर्थ है कल्पना, मन संकल्प करता है और झट ही विकल्प भी खड़ा कर देता है, तभी हमारे संकल्प पूर्ण नहीं होते. जितना हमें ज्ञात है हम उसी स्मृति के आधार पर व्यक्तियों, वस्तुओं और परिस्थितयों के बारे में राय बना लेते हैं, उसी को प्रमाण मानते हैं जो इन आँखों से दिखाई देता है, जो मन, बुद्धि सुझा देते हैं किन्तु सत्य असीम है उसे पकड़ना नामुमकिन है. वह हरेक के भीतर है. हरेक उसी एक परमात्मा की जीती-जगती मूरत है. हमें न स्वयं की सीमा बांधनी है न किसी अन्य की. हमारी छोटी सी बुद्धि में समा सके, ज्ञान केवल वही तो नहीं है. इस दुनिया की हर शै उसी परमात्मा से निकली है, वह हरेक को एक समान प्रेम करता है. सभी को उसने अपना ही रूप बनाया है. हमें उसी पर नजर रखनी है. 

5 comments:

  1. आपको पढ़ना एक सुखद अनुभूति देता है !!हर बार ज्ञान का एक पट खोल देतीं हैं आप !!और हम स्वयं को भूल चल पड़ते हैं उसी राह पर ...!!आभार अनीता जी ...इस मार्गदर्शन के लिए ....!!

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    1. स्वागत है अनुपमा जी, यह तो ऋषियों का ज्ञान है

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  2. इस दुनिया की हर शै उसी परमात्मा से निकली है, वह हरेक को एक समान प्रेम करता है.

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  3. प्रमाण सिर्फ एक है और वह है श्रुति (वेद )्हमारा मन बुद्धि अहंकार भौतिक पदार्थ मटीरियल एनर्जी की निर्मिति है इसीलिए सीमित है। पूरा दर्शन दृश्य का हो ही नहीं पाता है। सुन्दर विचार सरणी।

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  4. राहुल जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !

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