Sunday, August 3, 2014

जहाँ दूसरा हो न कोई

जनवरी २००७ 
योग वशिष्ठ अद्वैत ज्ञान का अद्भुत ग्रन्थ है. जिसके अनुसार आत्मा का अनुभव ज्ञान के द्वारा ही हो सकता है, ज्ञान जब तक परिपक्व नहीं होगा तब तक अन्य साधनों द्वारा किया गया अनुभव टिकेगा नहीं. यह सारा जगत ब्रह्म ही है अथवा तो आत्मसत्ता ही जगत का आभास देती है. आदि में इस जगत के होने का कारण नहीं था केवल चिन्मय तत्व था उसमें संवेदन हुआ और धीरे-धीरे यह सब संकल्प रूप से प्रकट हुआ. हमारे संकल्प ही बाहर सत्य होकर दिखते हैं. यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं है, सब आभास मात्र है. हम वास्तव में चेतन हैं जड़ का संयोग होने से हम स्वयं को जड़ जगत की तरह मानने लगे. मन जब पूरी तरह खाली हो जाता है तभी चैतन्य का अनुभव होता है. 

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