Tuesday, August 19, 2014

हो निशंक जियें इस जग में

जनवरी २००७ 
श्रेष्ठ जनों से जब हम आदर ग्रहण करने लगते हैं तो वह हमारे पतन का कारण है. मान पाने की इच्छा वह भी बड़े लोगों से अधम सुख है. जो अपने भविष्य को सुंदर बनाना चाहता है उसे तो हर पल सजग रहना होगा. ईश्वर से उसे वही चाहना चाहिए जो उसके लिए हितकारी हो. श्रद्धा से भरा मन, विश्वासी मन, समर्पित मन ही निर्भार, निश्चिंत, निर्द्वन्द्व तथा निशंक हो सकता है. जब हम ऐसा जीवन जी सकते हैं तो व्यर्थ की चिंता क्यों करें. हम कितने तो भाग्यशाली हैं, मानव जन्म मिला, भारत भूमि में मिला तथा ज्ञान पाने का अवसर मिला. न जाने किस जन्म में कौन सा पुण्य किया था जो इतना सब सहज ही प्राप्त हुआ है. इस जगत में पाने योग्य यदि कुछ है तो श्रद्धा ही है. इसके सामने बड़े से बड़े सुख भी फीके पड़ जाते हैं. यह सुख भीतर से मिलता है, हमें सहज बनाता है, सत्य से मिलाता है. इसे पाने के बाद ही कोई मीरा गीतों को लुटाती है, सन्तजन प्रेम बरसाते हैं. यह जगत शरीर को रखने में सहायक है, लेकिन सुख नहीं दे सकता, हाँ, सुख देने के का भ्रम अवश्य दे सकता है.   

5 comments:

  1. भावपूर्ण एवं सारगर्भित ...!!

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  2. बिल्कुल सच कहा है ...आभार

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  3. भक्ति की पहली सीढ़ी है श्रद्धा

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  4. अनुपमा जी, वन्दना जी, कैलाश जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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