१७ जुलाई २०१८
सुख की तलाश जब तक बाहर है, दुःख मिलने ही वाला है. सुख-दुःख
दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक के साथ दूसरा मुफ्त में मिलता है. सुख जब
अपने होने में ही मिलने लगता है, तब उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं होता, क्योंकि अपने
होने में तो किसी को आज तक संदेह नहीं हुआ. हमारी तकलीफ यह है कि हम कभी भीतर जाकर
अपने सही स्वरूप को खोजते नहीं. जगत के साथ हमारा जो संबंध है, उसी के नाते हम
स्वयं को दी गयी उपाधियों से ही जानते हैं. कोई हमसे हमारी पहचान पूछे तो झट हमारा
उत्तर होगा, अपना नाम, जबकि वह तो बदला जा सकता है, राष्ट्रीयता अथवा धर्म भी बदला
जा सकता है, व्यवसाय भी बदल सकता है, रिश्ते भी जो आज हैं कल बदल सकते हैं. स्वयं को हम जब तक शुद्ध रूप में पहचान
नहीं लेते अपने होने का स्वाद हमें नहीं मिल सकता. तब तक सुख की तलाश बाहर ही जारी
रहेगी और पीछे-पीछे दुःख भी मिलता रहेगा.
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