५ जुलाई २०१८
हमारे जीवन में बाहर की परिस्थतियाँ कैसी भी हों, हरेक के भीतर परमात्मा
एक सा समाया है. जैसे आकाश सबको एक सा दीखता है, सूर्य रश्मियाँ, हवा और जल किसी
के प्रति भेदभाव नहीं करते वैसे ही सबके भीतर चेतना का स्रोत एक ही है. जैसे सागर
देखने सब जाते हैं, पर कोई लहरों से भयभीत होकर उसके निकट तक नहीं जाता, कोई गोता
लगाकर मोती खोज लाता है, उसी तरह हम अपने विचारों और भावनाओं की लहरों को देखकर ही
खुद को जान लिया समझ लेते हैं, और कोई संत गहरे जाकर सत्य का मोती खोज लेता है. जैसे
सागर सब नदियों का स्वागत करता है और खारे जल को मुक्त करके मीठा बनाकर पुनः उन्हें लौटा
देता है, परमात्मा हमारे विचारों और भावों को समा लेता है और परिवर्तित कर नये रूप
में लौटा देता है.
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