३ जुलाई २०१८
जीवन एक यात्रा है, यह वाक्य हमने न जाने कितनी बार सुना है.
संत कहते हैं, हम इस जगत में कहीं और से आये हुए यात्री हैं, दो-चार दिन यहाँ गुजार
कर हमें वापस जाना है. इन बातों में एक गहरी सच्चाई है, इसका अनुभव किसी को तब होता
है जब वह कोई यात्रा कर रहा होता है. घर से दूर किसी नये शहर में जाकर हम कितनी
सजगता से वहाँ के दर्शनीय स्थलों को देखते हैं, आने वाली तकलीफों को भी मुस्कुराते
हुए झेल लेते हैं. मित्रों के यहाँ जाने पर कितना प्रेम जताते हैं. मन सदा ही एक ‘मगन
भयो’ की भाव मुद्रा में रहता है. हम यहाँ घूमने आये हैं, रहने नहीं, यह भाव जगा
रहता है तो न कोई राग सताता है न ही द्वेष, कोई असुविधा भी हो तो यह याद आ जाता
है, कौन सा हमें यहाँ सदा रहना है, एक यात्री का मन सदा उत्सुकता से भरा होता है,
जंगल घूमने गया हो तो एक चिड़िया या एक हिरन की झलक भी उसे ख़ुशी से भर जाती है. इन
सबके पीछे कारण होता है कि मन में मोह व ममता नहीं होती. यह जगत भी ऐसे ही हमारे
विहरने का स्थान मात्र है, यह हमारा कोई स्थायी पता नहीं है. मोह-ममता के बिना मन
कितना हल्का रहेगा, इसकी कल्पना ही कितनी सुखद जान पडती है.
जीवन चलने का नाम ...
ReplyDeleteसार्थक शीर्षक जीवन यात्रा के नाम ... सुंदर पोस्ट ...
स्वागत व आभार दिगम्बर जी !
ReplyDelete