Monday, July 9, 2018

सृजनशील जब मन हो जाये


९ जुलाई २०१८ 
जीवन ऊर्जा हर क्षण बंट रही है. कहीं नक्षत्रों का निर्माण हो रहा है तो कहीं पुष्पों का सृजन. इस धरती पर हर क्षण कितना कुछ नया बन रह है और पुराना विनष्ट हो रहा है. मानव मन में भी असंख्य विचारों का सृजन होता है, विशाल पुस्तकालय उन विचारों की ही देन हैं. जाने-अनजाने हम सभी सृष्टिकर्ता के इस कार्य में उसके सहायक बन जाते हैं. उसने मानव को ही नित नूतन सृजन की क्षमता दी है. मन की गहराई में न जाने कहाँ से किसी कवि और लेखक के भीतर भावनाओं और विचारों का जखीरा चला आता है, जिसे वह रचना के रूप में बाहर उलीच देता है. भाषा और व्याकरण का सीमित ज्ञान ही इसका कारण है ऐसा नहीं लगता, अवश्य ही उसका मन किसी अनंत स्रोत से जुड़ा है, जो ताजे कूप की तरह सदा भरा रहता है. कभी ऐसा भी देखा गया है जिस भाषा का इस जन्म में अध्ययन ही नहीं किया, किन्हीं पलों में उसके शब्द भी भीतर से फूटने लगते हैं. तब विश्वास हो जाता है, यह यात्रा सिर्फ इसी जन्म की तो नहीं है.

No comments:

Post a Comment