Tuesday, July 10, 2018

जब आवे संतोष धन


११ जुलाई २०१८ 
संत कहते हैं, जैसे सागर में मछलियाँ और हवा में पंछी सहज ही निवास करते हैं, हमारी चेतना परम चैतन्य के महासागर में सदा ही स्थित है. हम मन के द्वारा विचार करते हैं, इन्द्रियों के द्वारा इस जगत का अनुभव करते हैं. अनुभव और जिसका अनुभव किया अर्थात यह जगत हमें इतना प्रभावित करता है कि हम इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं देते कि अनुभव करने वाला कौन है. अनुभव करने वाली चेतना सदा ही परम में स्थित है. पहले ध्यान के द्वारा मन से सारे अनुभवों से मुक्त करना है, उस क्षण में अनुभव कर्ता स्वयं का अनुभव करेगा, और जब दीर्घ काल तक चेतना स्वयं में ठहरना सीख जाएगी, शुद्ध चैतन्य का अनुभव भी होगा. संत और शास्त्र कहते हैं, इस अनुभव के बाद जो सहज शांति और संतुष्टि मन को मिलती है, वह किसी कारण से विलुप्त नहीं होती, क्योंकि वह परम से उपजी है जो अजर और अमर है.

1 comment:

  1. बहुत बहुत आभार रश्मि जी !

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