जीवन में हमें जो कुछ भी मिलता
है वह हमारे विकास के लिए आवश्यक है, ऐसा जो जान लेता है अर्थात हृदय से मान लेता
है और बुद्धि से स्वीकार कर लेता है, उसका जीवन सहज हो जाता है. हर सुख का क्षण यदि
हमें अस्तित्त्व के प्रति कृतज्ञता से भर दे और हर दुःख का क्षण जीवन के प्रति
जिज्ञासा से भर दे तभी हम सहजता की ओर बढ़ रहे हैं. सहजता का अर्थ है उस तरह होना
जैसे कोई फूल उगा हो या कोई झरना बहता हो, जिसे अपने को श्रेष्ठ होने के लिए कुछ
सिद्ध नहीं करना पड़ता. मानव सदा स्वयं को 'कुछ' होने की दौड़ में लगाये रखता है, वह
अन्य की तुलना में विकसित होना चाहता है. एक जन्म के बाद दूसरा जन्म और जन्मों की
एक लम्बी श्रृंखला चलती चली जाती है, हम विकास की उस ऊँचाई तक नहीं पहुँच पाते जिसके
बाद इस चक्र में दुबारा नहीं आना पड़ता. आज वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो मानव
की बुद्धि चरम सीमा तक पहुँच चुकी है, किंतु अस्तित्त्वगत दृष्टि से मानव की चेतना
उपनिषदों के ऋषि की चेतना तक भी नहीं बढ़ पायी है. आज ध्यान को भी हमने संसार में
उन्नति के लिए साधन बना लिया है, किंतु जिस क्षण तक ध्यान में होना एक सहज अनुभव न
हो जाये, जीवन के मर्म का ज्ञान नहीं हो पाता.
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