कृष्ण का नाम याद आते ही मन में
स्मृतियों का एक अनंत भंडार खुल जाता है. याद हो आती हैं गोपियाँ और ग्वाल-बाल, नंद-यशोदा,
गोकुल और वृन्दावन. मथुरा की जेल में कैद देवकी और टोकरी में नन्हे कान्हा को उठाये
यमुना पार करते वसुदेव भी याद आते हैं. कदम्ब का पेड़ और बांसुरी की तान भी देश के लोकमानस
में इस तरह रची-बसी है कि कहीं भी, कोई भी बांसुरी बजाये, कृष्ण की स्मृति मन को
तरंगित कर जाती है. ब्रजभूमि का तो हर रजकण कृष्ण के स्पर्श को भीतर धारण किये हुए
है. पूतना और बकासुर के नाम भी कृष्ण से वैसे ही जुड़े हैं जैसे सुदामा और उद्धव के.
कृष्ण अर्जुन के सखा हैं और भीष्म पितामह के आराध्य भी, द्रौपदी के तारणहार हैं तो
रुक्मणी के प्रिय द्वारकाधीश. राधा का नाम तो कृष्ण के साथ एक हो गया है, उसे अलग
से गिनाने की भी जरूरत नहीं है. भारत उसी तरह कृष्णमय है जैसे उपवन में सुगंध हो
या दीपक में ज्योति. चित्रकला, संगीत, वास्तुशिल्प, साहित्य या अन्य कोई भी विधा
हो कृष्ण के बिना कोई भी पूर्ण नहीं होती. महाभारत को गीता रूपी रत्न से सुशोभित
करने वाले कृष्ण का आज जन्मदिन है. यही प्रार्थना है कि जन्माष्टमी का यह पर्व भारत
के सुन्दर भविष्य की नींव रखने वाला सिद्ध हो.
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