भारत में परिवर्तन की हवाएं चल
रही हैं. ये हवाएं अपने साथ कितने ही संदेश लेकर आ रही हैं. दुनिया आज भारत की ओर
आशा भरी नजर से देख रही है. आधुनिकता के नाम पर जब धरती के सारे स्रोतों को नष्ट
किया जा रहा हो, तब वेदों में दिए गये संदेश जैसे उसके घावों पर मरहम रखते से लगते
हैं, जिनमें कहा गया है धरती हमारी माँ है और हम उसके पुत्र हैं, माँ जो प्रेम की
मूरत है, वह अपना सब कुछ संतानों पर लुटाने को तैयार ही है. नदियों की पूजा करने
का वास्तविक अर्थ क्या है आज उसे समझने व समझाने का समय आ गया है. वृक्षों को
आराध्य मानना और पंच तत्वों को परमात्मा का स्थूल शरीर मानना क्या हमें अपने
पर्यावरण को सरंक्षित रखने का संदेश नहीं देता. अध्यात्म की सुगंध यहाँ की हवा में
बसी हुई है, भौतिक उन्नति के शिखर पर पहुँचा हुआ व्यक्ति भी यहाँ संतों के चरणों
में अपना सिर झुकाने में स्वयं को भाग्यशाली मानता है. जीवन के मर्म को समझने के
लिए आदिकाल से हर देश के यात्री भारत आते रहे हैं, हम कितने भाग्यशाली हैं कि
पृथ्वी के इस भूभाग में हमारा जन्म हुआ है, जिसका अर्थ ही है प्रकाश. जैसे प्रकाश
के अभाव में जगत होते हुए भी दिखाई नहीं देता वैसे ही ज्ञान रूपी प्रकाश के न होने
पर ही दुःख रूपी अंधकार ने हमें घेर लिया है, ऐसा भ्रम होने लगता है.
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