कश्मीर की वादियों में आज
सन्नाटा है, लेकिन यह सन्नाटा तूफान से पहले का सन्नाटा नहीं है. यह शांति तो उस
उत्सव की राह देख रही है जो आतंकवाद, गरीबी, अलगाव और अशिक्षा को दूर करके अमन और
खुशहाली के माहौल में वहाँ मनाया जाने वाला है. पिछले चार दशकों से जो खून बहा है,
उसकी कीमत तो कोई नहीं चुका सकता, किंतु जिस नफरत की आग को कुछ स्वार्थी तत्वों ने
भड़काया है, उसके बुझने का प्रबंध धारा तीन सौ सत्तर को निष्प्रभावी बनाने के साथ किया
जा चुका है. भारत की वीर सेना और देश को सर्वोपरि मानने वाली निर्भीक राजनीतिक
इच्छा शक्ति ने जो कदम उठाया है, वह इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में
लिखा जायेगा. हर देशवासी के मन में यही आकांक्षा है कि एक बार पुनः काश्मीर में
शिकारों पर गीत फिल्माए जाएँ, केसर की क्यारियां महकें. धरती का जन्नत कश्मीर
संतों और सूफियों का एक सा स्वागत करे. हर घर में तिरंगा फहरे और हर कश्मीरी फख्र
से कह सके, वह भी एक सच्चा भारतीय है.
सब कुशल हो....
ReplyDeleteस्वागत व आभार
ReplyDeleteसुंदर भविष्य की आशा है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आशा के भाव जगाती....
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