जगत में विविधता है, रूप, रंग,
गंध, ध्वनि और स्वाद के न जाने कितने विषय हमारे चारों ओर बिखरे हैं. आँख को एक
दृश्य दिखाएँ या हजार, उसे कोई भार नहीं लगता. नासिका ने हजारों गंध का ज्ञान
ग्रहण किया है पर एक और गंध लेने के लिए उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता. इसी
प्रकार मन जो इन्द्रियों के द्वारा दिखाए गये ज्ञान को ग्रहण करता है, न जाने
कितने जन्मों से यह कार्य कर रहा है, उसे कभी असुविधा नहीं होती, हर दिन नये-नये
विषयों का ज्ञान प्राप्त करने की उसकी आकांक्षा को कोई बाधा नहीं पड़ती. यहाँ तक की
बात जो समझ लेता है वह मन के हजार चिन्तन करने पर भी स्वयं को सहज अवस्था में रख
पाने में समर्थ हो जाता है. मन में एक विचार आये या हजार विचार आयें, यदि हम स्वयं
को मन से परे एक सत्ता के रूप में अनुभव कर सकते हैं, उसी तरह जैसे रूप से परे आँख
है और आँख से परे मन है, तो हम सदा अपने निर्विकार रूप में बने ही रहते हैं. जीवन
में रहकर भी कमल की तरह अलिप्त.
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