जुलाई २००२
सात्विक साधक लाख कठिनाइयाँ आने पर भी अपने पथ से विचलित नहीं होता. ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम, गुरु के प्रति अनन्य श्रद्धा तथा सभी प्राणियों के प्रति समभाव उसके हृदय में बने ही रहते हैं. सुख-दुःख जो प्रारब्ध के अनुसार मिलने वाले हैं उसको विचलित नहीं कर पाते. द्वन्द्वातीत होने में वह सफल हो, ऐसा ही उसका लक्ष्य रहता है. हमें भी स्थितप्रज्ञ होने के लिये ऐसा ही साधक बनना है. हृदय कोमल हो, प्रेम की धारा उसमें कभी सूखने न पाए, साथ ही यह ज्ञान भी जाग्रत रहे कि आनंद स्वरूप ईश्वर को पाना ही एकमात्र लक्ष्य है. उस परम लक्ष्य को पाये बिना हम चैन से न बैठें. हमारी पूजा, ध्यान, भक्ति व सेवा का केंद्र एकमात्र वही एक हो. रज व तम तब स्वतः विलीन होते जायेंगे, वासनाएं क्षीण होते-होते नष्ट हो जाएँगी, और एक दिन हम अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित होंगे.
रुको नहीं ...बढे चलो ...
ReplyDeleteउत्तम विचार हैं ...
ReplyDeleteAnita ji Namaskar
ReplyDeleteaapaki dairy ke kuchh hisse Mujhe bahut hi prerak lage. Main unhe Delhi, ambala se prakashit apane akhabar AAJ SAMAJ ke dharm panne par chhap raha hon....aapka E-mail address nahin khoj pa raha hon ki panna kahan bhejun
Kripaya E-mail address is pate par bhejen
manojkumarsingh9@gmail.com
aapka parichaya bhi sirf kavayitri ke roop men de pa raha hon jo mujhe pura nahin lagata
ReplyDeletemanoj kumar singh
08750729272