अगस्त २००२
वह परमात्मा जिसे लोग मंदिरों में तलाशते हैं, मन के मंदिर में ही मिल सकता है. भक्त को वह अपने हृदय में प्रतीत होता है. वह भक्त को निर्देश देता है, प्रेम देता है, आनंद और ज्ञान देता है. उच्च मनोभूमि पर स्थापित करता है, द्वन्दों से परे ले जाता है, आकाश की तरह मुक्त वह परमात्मा स्वयं सच्चिदानंद है, उसकी अनुभूति होने के बाद संसार का सुख मृगतृष्णा की भांति प्रतीत होता है. भीतर का सुख शाश्वत है, असीम है, अपरिवर्तनीय है. जहाँ कोई रुकावट नहीं, कोई उहापोह नहीं, कोई चाह नहीं, कोई अपेक्षा नहीं. वह शाहों का शाह जब दिल में बसता हो तो और कुछ चाहने योग्य बचता भी कहाँ है. वह जिसका मीत बना हो उसका शोक सदा के लिये हर लिया जाता है. जीवन उत्सव बन जाता है. भक्ति, प्रेम और ज्ञान ही जीवन को तृप्त कर सकते हैं, इसका पता चलने पर अपनी कमियों को दूर करने की समझ भी बढ़ती है और संकल्प का बल भी मिलता है. एक छोटी सी किरण भी यदि उस परम की भीतर मिल जाये तो राह मिल जाती है.
परमानंद की प्राप्ति का सुंदर मार्ग।
ReplyDeleteprabhu to andar hain ... saanson ke saath
ReplyDeletebahut sunder gyanvardhak ...aalekh...
ReplyDeleteabhar.
sach ka sandesh deta lekh.
ReplyDeleteवह शाहों का शाह जब दिल में बसता हो तो और कुछ चाहने योग्य बचता भी कहाँ है. वह जिसका मीत बना हो उसका शोक सदा के लिये हर लिया जाता है. जीवन उत्सव बन जाता है.
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हर शब्द जीवन में उतारने योग्य !