अगस्त २००२
आध्यात्मिकता का एक बड़ा उद्देश्य है लोक संग्रह यानि सेवा, अन्यों के जीवन में हम यदि खुशी का संचार कर सकें, प्रेम व भाईचारे का संदेश दे सकें तो समाज के ऋण से कुछ हद तक तो मुक्त हो सकते हैं. एक व्यक्ति समाज से कितना कुछ लेता है उसका शतांश भी वह लौटा सके तो उसका कितना भला होगा. सब ओर शांति का संदेश फैले, हमारा योगदान भी उसमें हो, ऐसा विचार ही मन-प्राण को ऊर्जा से भर जाता है. मन प्रमादी न ही, छल न करे न खुद से न औरों से, तो वहाँ प्रेम टिकता है और जो हमारे पास ज्यादा हो वही तो हम बाँट सकते हैं. परमात्मा के नाम का उच्चारण इसमें सहायक होता है. वह हमारे साथ है इस का दृढ़ विश्वास हमें हर द्वंद्व से मुक्त करता है.
सुविचार सांझा करने का शुक्रिया...
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका ब्लॉग..
अनीता जी ,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सन्देश दिया है आपने ... आध्यात्मिकता का यही उद्देश्य है ..और इसी रस्ते से हम ऋण बंधन से मुक्त हो सकते हैं ...
शुक्रिया इन सुविचारों को यहाँ बाँटने के लिए
आध्यात्म को इस तरह से व्यखित करना अच्छा लगा ...
ReplyDeleteमनोज जी, विद्या जी, मुदिता जी, व दिगम्बर जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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