हमें पर्वत की भांति अडोल होना है और यह भाव आत्मज्ञान से आता है. हमें अपने मन को अपने से पृथक देखना है. उसे साधन मानते हुए शुद्ध करना है. धीरे धीरे हम एक अद्भुत शांति का अनुभव करते हैं..आत्मभाव में कितना सहज सुख है. देह, मन व बुद्धि से स्वयं को संयुक्त करके हम व्यर्थ ही अपने को सुखी व दुखी मानते हैं जबकि संसार की किसी भी वस्तु में यह सामर्थ्य नहीं जो हमें थोड़ा सा भी कष्ट पहुँचा सके. साधन स्वरूप मन व बुद्धि तो हमें इस सुंदर सृष्टि का ज्ञान प्राप्त करने के लिये मिले हैं न कि दुखों का अम्बार ढोने के लिये.
आप हमेशा ही बहुत प्रेरणादाई लिखतीं हैं.
ReplyDeleteअनीता जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष २०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.
मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग अच्छा लगा. आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआप और आप के परिवार को नव वर्ष की हार्दिक बधाई .....:) बहुत सारी जानकारी एक छोटी si पोस्ट से मिली ..मन पर कितना सही लिखा आप ने .. पढ़ कर अच्छा लगा .....शुक्रिया....ऐसे ही हमारा ज्ञानवर्धन करते रहे .....
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