Thursday, December 15, 2011

अस्तित्त्व का उपहार


अगस्त २००२ 

क्रोध वह है जो हमारे व्यक्तित्व को मिटा दे, कामना वह है जो हमें अपने इशारे पर नचाये, मोह वह है जो हमारा विवेक छीन ले. एक इच्छा पूरी होते ही दूसरी सर उठा लेती है जो बाधा बने उसके प्रति क्रोध, क्रोध से सम्मोहन, फिर समझ भी चली जाती है. तब मन का चैन, शांति, सुख सब विदा हो जाते हैं. कामना यदि सात्विक हो तो जीवन धारा ही बदल जाती है. जब यह ज्ञान हो कि तन साधन रूप है. नियमित जीवन, जीवन में हास्य, समय समय पर भोजन-जल, गहरी श्वास तथा नींद इसे स्वास्थ्य प्रदान करते हैं. मुस्कुराते, गुनगुनाते, तथा सबके भीतर तरंग पैदा करते हुए जीना ही सहज जीवन है. मन का स्नेह, बुद्धि का विचार, तथा आत्मा का स्वरूप सभी कुछ अस्तित्त्व का दिया हुआ है. जब तक हमारे पास है इसकी कद्र करनी है. उसकी आराधना करने के लिये हम उसी के प्रसाद का ही तो उपयोग करते हैं. तन का बल हो या मन का, हमें उपहार रूप में मिला है, इसका दुरूपयोग करने का भला हमें क्या अधिकार है. 

1 comment:

  1. कामना यदि सात्विक हो तो जीवन धारा ही बदल जाती है... sach hai , sundar hai shiv hai

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