जुलाई २००२
ईश्वर के प्रेम में रंगने की चाह हो तो जीवन से प्रमाद, आलस्य, व अधिक निद्रा विदा हो जानी चाहिए. हम जितनी ऊँची वस्तु पाना चाहते हैं कीमत भी उतनी ही देनी पड़ती है. ब्रह्म ज्ञान अथवा आत्मसाक्षात्कार जैसे अमूल्य खजाने की प्राप्ति हेतु जितनी कीमत देनी पड़े कम है. एक दिन भी हम चूकने न पाएँ. कैसी भी व्यस्तता हो पर ‘ध्यान’ से हम च्युत न हों. सजगता नहीं छूटे. जीवन को हर दिन एक नए उत्साह के साथ जियें मानो आज ही वह दिन हो जब परम सत्य के दर्शन होने वाले हैं. जीवन संयमित हो, बिखरी हुई वृत्तियों को मोक्ष की तरफ ले जाना ही एक मात्र लक्ष्य हो. आत्मभाव में रहना, आत्मतृप्ति व आत्मप्रकाश पाना ही ध्येय हो जाये. इस सरकते हुए अनित्य संसार में नित्य तत्व का ज्ञान हो जाये. नश्वरता में शाश्वत के दर्शन होने लगें. मृत्यु का जाल हमें जकड़ न पाए, शुद्ध, नित्य, चेतन तत्व का अनुभव जीते जी हो जाये. साथ ही भक्ति से प्राप्त होने वाला शुद्ध सात्विक आनंद हमारे जीवन से कभी लुप्त न होने पाए, सदगुरु की कृपा के पात्र हम बने रहें.
sundar prastuti.
ReplyDeleteमानो आज ही वह दिन हो जब परम सत्य के दर्शन होने वाले हैं. जीवन संयमित हो, बिखरी हुई वृत्तियों को मोक्ष की तरफ ले जाना ही एक मात्र लक्ष्य हो. आत्मभाव में रहना, आत्मतृप्ति व आत्मप्रकाश पाना ही ध्येय हो जाये.
ReplyDeletedidi dhalayi aa gayi thi....kuchh.
aapne jhat se jaga diya !
आपका पढ़ा ,सुना गुना हुआ ज्ञान का सार है!
ReplyDeleteकल शनिवार ... 03/12/2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
aadhyatmik chintan ke liye bahut kuchh mila ...apka sadar abhar.
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