Monday, December 26, 2011

सत्य की डगर


अगस्त २००२ 
सत्य के पथ पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है, पग-पग पर चोट खाने का अंदेशा रहता है. थोड़ा सा भी अचेत हुए तो कभी अहंकार आकर अपनी छाया से ढक लेता है और कभी क्रोध ही अपने फन उठा लेता है. जो अनुभव पहले किये थे सारे हवा हो जाते हैं और मन एक बार फिर अपने को पंक में सना पाता है. कमलवत् जीवन के सारे ख्वाब बस ख्वाब ही रह जाते हैं. हृदय से  यदि भगवद् स्मृति एक पल के लिये भी न हटे तो हम मुक्त ही हैं. लेकिन ऐसी स्थिति आने से पूर्व सजगता खोनी नहीं है, यह महासंकल्प ही हमें उबारेगा. अन्यथा कौन हमें मार्ग दिखायेगा. हमारे अमर्यादित संकल्प ही हमें दुःख के भागी बनाते हैं. जीवन को यदि एक दिशा दे दी है तो जो भी कार्य उस दिशा से विमुख करने वाले हैं उन्हें त्याग देना ही ठीक है. ‘अगर है शौक मिलने का तो हरदम लौ लगाता जा’... .एक उसी की लौ अगर दिल में हो तो वहाँ अंधकार कैसे आ सकता है.  

3 comments:

  1. अनीता जी ...

    बहुत सधे शब्दों से आप अपने अनुभव हम सबसे बांटती हैं

    जीवन को यदि एक दिशा दे दी है तो जो भी कार्य उस दिशा से विमुख करने वाले हैं उन्हें त्याग देना ही ठीक है.

    बहुत सुन्दर

    शुक्रिया

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  2. बहुत-बहुत धन्यवाद ऍ

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  3. जीवन को यदि एक दिशा दे दी है तो जो भी कार्य उस दिशा से विमुख करने वाले हैं उन्हें त्याग देना ही ठीक है....
    बहुत बहुत आभार आपका दी ! उचित मार्गदर्शन के लिए .

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