संत तुकाराम जी के जीवन पर आधारित घटनाओं को पढ़ने से पता चलता है कि उन्होंने काफ़ी कष्ट झेले. आग में तप कर ही सोना निखरता है. अंगुलिमाल की कथा पढ़कर भी भीतर कैसा विस्मय भर जाता है. हमारा अतीत चाहे जैसा भी हो यदि सत्य की चाह भीतर जग जाये तो ईश्वर तत्क्षण हमारा हाथ पकड़ लेते हैं. अतः अतीत में न रहकर वर्तमान में रहने का उपदेश हमें संत देते हैं. कर्म के सिद्धांत के अनुसार हम यदि इसी क्षण से सुकृत करें तो भविष्य सुधार सकते हैं. पिछले कर्मों का फल सहज भाव से स्वीकार करने का सामर्थ्य भी ईश्वर हमें देते हैं. फिर कष्ट कष्ट कहाँ रह जाता है. साधक अपने मार्ग तय कर लेता है. बल्कि देखा जाये तो ईश्वर ही उसका मार्ग तय कर देते हैं. मन में जो थोड़ी बहुत आशंका होती है कृपा उसे भी मिटा देती है. और तब सत्य ही एकमात्र उसके जीवन का केन्द्र बन जाता है. वह उसका हाथ पकड़ता है और ईश्वर उसका.
सत्यमेवजयतेनानृतम् ।
ReplyDeleteसत्य की ही विजय होती है , असत्य की नहीं ।