Tuesday, December 6, 2011

चंचल है मन


 जुलाई २००२ 
भगवद् गीता में अर्जुन ने कहा है, वायु को वश में करना सरल है, पर हे केशव ! इस मन को वश में करना कठिन  है. मन अति चंचल है. दरअसल मन एक छोटे बालक की तरह व्यवहार करता  है. उसे उसी तरह मनाना, पुचकारना तथा कभी-कभी फटकारना भी पड़ता है. साधक का ध्येय है अनवरत चलती विचारों की श्रंखला को तोड़ना, क्योंकि मुक्त तभी हुआ जा सकता है. सो ध्यान में हर क्षण मन पर नजर रखनी होगी, कि कहीं कोई बिन बुलाए मेहमान की तरह कोई विचार तो प्रवेश नहीं कर रहा. उसे क्षण भर देखें तो जैसे सागर में उठी लहर स्वयं शांत हो जाती है, वह विचार स्वयं शांत हो जाता है. पर देखना पड़ेगा, अन्यथा पता ही नहीं चलता और एक से दूसरा शुरू होते-होते श्रंखला सी बन जाती है.

3 comments:

  1. mera comment kahan gaya...
    kuchh coments ja nahin rahe hain ....

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  2. पर देखना पड़ेगा, अन्यथा पता ही नहीं चलता और एक से दूसरा शुरू होते-होते श्रंखला सी बन जाती है.
    ..
    प्रारंभिक अवस्था में ही मन ज्यादा तंग करता है जब कि वही अवस्था होती है साधक को विघ्न से बचने की !

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  3. अनुपमा जी, आपका कमेन्ट दुबारा लिख भेजिए...

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