july 2002
बचपन में एक गीत सुना था “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर देख चाँद की ओर” ! हमारे मन की गठरी में भी कई चोर लगे हैं. इच्छा, झुंझलाहट, मोह, सम्मान पाने की चाह, स्नेह पाने की चाह, ये सभी चोर ही तो हैं. इच्छा पूरी न हो तो क्रोध आता है, क्रोध, अहंकार को चोट लगने से हुई पीड़ा के कारण आता है. अहंकार एक गांठ है जो ऐसे ही चुभती है जैसे किसी के जूते में कंकर हो और पैर में गड़े. तभी तो यदि इच्छा पूरी हो जाये तो अहंकार को दृढ़ता मिलती है. एक साधक को जीवन में जो भी, जब भी मिलता जाये, चाहे वह अनुकूल हो या प्रतिकूल उसे अपने विकास में साधित करते जाना है. ईश्वर प्राप्ति की इच्छा बनी रहे तो शेष स्वयं ही छूटती चली जाती हैं.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से
I think this is one of the most significant info for me. And i am glad reading your article.
ReplyDeleteFrom Great talent