Wednesday, November 30, 2011

अहंकार

जुलाई २००२ 

यह जो भीतर हल्की सी चुभन कभी-कभी रह-रह कर प्रतीत होती है, वह हमारा अहंकार ही तो है. और हद यह कि यह मिथ्या अहंकार है. जब सारा जगत स्वप्नवत् है तो स्वप्न में किया गया कार्य  हमें इतना प्रभावित क्यों करे. यदि हम प्रतिक्रिया वश स्वयं को अपने उच्च पद से नीचे गिराते हैं तो इसमें कोई वीरता तो नहीं. चट्टान से दृढ़ बनने का संकल्प लिया हो या पानी कि धार सा निर्मल व गतिमान, दोनों ही परिस्थितियों में बाहरी आघात हमें चोट नहीं पहुँचा सकते. पानी पर लकीर डालो तो वह मिट जाती है, चट्टान को कुछ कहो तो वह प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती. हमें कैसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़े, कोई बात नहीं. जब हम अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हैं तो अन्य कोई उपादान हमारे सुख-दुःख का कारण क्यों बने. जो मुक्त करे वही ज्ञान है. हृदय में कोई गांठ न रहे. एक-एक कर सारी गांठों को खोलते जाना है. पहले बाहर की ममता फिर देह, मन व बुद्धि के प्रति आसक्ति का त्याग. जो अहं को त्याग सके वही सच्चा साधक है

2 comments:

  1. यह जो भीतर हल्की सी चुभन कभी-कभी रह-रह कर प्रतीत होती है, वह हमारा अहंकार ही तो है. और हद यह कि यह मिथ्या अहंकार है. ...
    हाँ दीदी अभी भी बहुत है ..कोई हमसे हमेशा कहता रहता है की बस इसे देखते रहो देखते रहने से ये एक दिन खतम हो जायेगा ...मगर जागरूक रहो !

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  2. हृदय में कोई गांठ न रहे. एक-एक कर सारी गांठों को खोलते जाना है. पहले बाहर की ममता फिर देह, मन व बुद्धि के प्रति आसक्ति का त्याग. जो अहं को त्याग सके वही सच्चा साधक है...

    bas aur kya......!!

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