जून २००२
हर हृदय में परमात्मा का वास है. होश में रहें तो दुःख पास नहीं फटकता और यदि कोई भाव ऐसा उठा भी तो होश में उसे देखा जा सकता है साक्षी बन कर, उसी क्षण वह अपनी ऊर्जा खोने लगता है. जैसे हमें यदि अनुभव हो कि कोई देख रहा है तो हमारा व्यवहार बदल जाता है वैसे ही भीतर के भाव देखने मात्र से बदलने लगते हैं. हमारे स्वप्न भी सचेत करते हैं कि परमात्मा से जो आनंद हमें मिला है उसे छोटे-छोटे सुखों के पीछे गंवा न दें. यदि हमारी निष्ठा सच्ची हो तो परमात्मा की ओर से देरी नहीं है. वह प्रेम का इतना अधिक प्रतिदान देते हैं कि मन छलक-छलक जाता है. यह सारा विश्व उसी एक का विस्तार है. उस एक की शक्ति हर ओर बिखरी है. जिसके मूल में प्रेम है, निष्काम प्रेम. यह संसार प्रेम से ही बना है प्रेम से ही टिका है और उसी में स्थित है.
ati uttam prernadayak vichar. aabhar.
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