जून २००२
आध्यात्मिक मार्ग पर चलना ही हमारी नियति है. हम सभी किसी न किसी रूप में इसी मार्ग के राही हैं. कोई अन्जाना है और कोई सचेत होकर चल रहा है. नित नए अनुभव होते हैं इस मार्ग पर, जैसे पहले से ही तय हों. कभी कभी ऐसा लगता है कि कोई आश्वासन दे रहा है कि सब कुछ सही समय पर होगा, ठीक होगा. किसी इच्छा का पूरा होना या न होना दोनों में कोई फर्क नहीं रह जाता. संसार का कोई भी सुख उतना आकर्षित नहीं करता जितना कि ईश्वर का विचार और उससे मिलने की ललक. वही जैसे हमारा मार्ग निर्देशित कर रहे होते हैं, तभी तो समय भी है, शास्त्र भी हैं, सदगुरु भी हैं सभी कुछ हमारे अनुकूल कर दिया है. जिसकी स्मृति ही मन को इतनी सौम्यता से भर देती है उसका साक्षात्कार कितना अभूतपूर्व होगा, यह बात ही पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है.
८४ लाक योनियों में भ्रमण कर मनुष्य शरीर मिलना,फिर शास्त्र और सद्गुरु का मिलना सर्वोत्तम उपलब्धि है, जो आध्यात्मिक पथ पर आरोहित कर प्रभु मिलन कराने की प्रभु की असीम कृपा ही है.
ReplyDeleteआपके सद् चिंतन को नमन,अनीता जी.
बहुत बढिया,
ReplyDeleteसुंदर चिंतन
बहुत सुंदर चिंतन ..
ReplyDeleteआभार !!
सत्य वचन
ReplyDeleteGyan Darpan
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