Tuesday, November 1, 2011

कर्म बंधन


जून २००२ 
ध्यान तभी टिकता है जब मन अन्तर मुख होता है. देह के ममत्व से ऊपर उठता है. विचार शून्यता की स्थिति तभी आती है. ध्यान बोध को जगाने के लिये है. सचेत मन को हटाने के लिये है. ध्यान से बुद्धि प्रज्ञा में बदल जाती है इसी प्रज्ञा के दर्पण में आत्मा का दर्शन होता है. ध्यान हमें मन में उठने वाले विचारों के प्रति सजग करता है. प्रत्येक कर्म पहले विचार के रूप में जन्म लेता है उसी रूप में यदि उसे शुद्ध कर लिया जाये तो कर्म भी शुद्ध होंगे और हम कर्म बंधन में नहीं पडेंगे.

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