कृष्ण परमगुरु हैं, जो हमारे अंतर में विद्यमान हैं. हमें हर क्षण अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हैं. उनकी मुस्कान अनोखी है, उनकी वाणी अद्भुत है जिससे वह युद्ध भूमि में मोहित हुए अर्जुन को ज्ञान प्रदान करते हैं. संसार रूपी युद्ध में हमारी बुद्धि भी मोह में पड़ी हुई है, कृष्ण हमें इससे पार ले जाने का उपाय बताते हैं. सुख-दुःख में सम रहकर, अभ्यास तथा वैराग्य के द्वारा मन को वश में रखकर हम स्थितप्रज्ञ बन सकते हैं. और जब मन शांत होगा तो शांत झील में चन्द्रमा की भांति आत्मा का प्रकाश मन में प्रतिबिम्बित होगा. आत्मा का अनुभव परमात्मा के निकट ले जायेगा, तो कृष्ण हमें अपने निकट बुलाते हैं और सभी को उसकी प्रकृति के अनुसार विभिन्न मार्गों में से कोई मार्ग चुनने की स्वतंत्रता भी देते हैं, भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग, राज योग, ध्यान योग आदि में किसी के भी द्वारा हम लक्ष्य की ओर कदम बढा सकते हैं. मार्ग तो हमें स्वयं ही चुनना है पर एक बार जब हम कदम बढा देते हैं तो वह हमारा हाथ थाम लेते हैं और तब तक नहीं छोड़ते जब तक हम उसे अपने मन पर अधिकार जमा लेने नहीं देते.
और जब मन शांत होगा तो शांत झील में चन्द्रमा की भांति आत्मा का प्रकाश मन में प्रतिबिम्बित होगा. आत्मा का अनुभव परमात्मा के निकट ले जायेगा, तो कृष्ण हमें अपने निकट बुलाते हैं ...
ReplyDeleteप्रणाम दी !
सुंदर।
ReplyDeleteमेरा भी प्रणाम स्वीकार करें।