पांच शरीर हैं हमारे, पांचों के पार वह चिदाकाश है जहाँ हमें पहुंचना है. सत्य को चाहने पर ही सत्य की यात्रा होगी. परमात्मा न जाने किस-किस उपाय से हमें उसी ओर ठेल रहा है, वह हमें सुख-दुःख के द्वंद्वों से अतीत देखना चाहता है. हमारे अहं को क्षत-विक्षत करता है. हम उसे तभी जान सकते हैं जब भीतर अहं न हो. शाश्वत को जानने और मानने की मति भी वही देता है. नश्वरता को अपनाएंगे तो वही मिलेगी, और मन पुराने संस्कार जगाता ही रहेगा. जब हम उसकी निकटता में रहते हैं, उसके सामीप्य का अनुभव करते हैं, तभी आकाश की भांति पूर्ण मुक्त, स्वच्छ और अलिप्त रहेंगे.
शब्द शब्द में ज्ञान.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है .
bahut sundar prastuti ...abhaar
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