अगस्त २००२
जीवन में ताजगी चाहिए तो जो कुछ हमें मिला है उसे बाँटना चाहिए. तितलियाँ, फूल, खुशबू और प्रेम को तिजोरी में नहीं रख सकते. बहता हुआ पानी ही स्वच्छ रहता है. हवा एक तरफ से प्रवेश करे और दूसरी तरफ से निकलने की भी व्यवस्था हो तो सब कुछ ताजा रहेगा. स्वार्थ वश जब वस्तुओं को हम मात्र अपने लिये चाहते हैं तो स्वयं को भी बंधन में बांध लेते हैं और मुक्त भाव से जीना भी भूल जाते हैं. जबकि हमारा मूल स्वभाव यह नहीं है और इसी लिये हम बेचैन हो जाते हैं, फिर उस बेचैनी को दूर करने के लिये हम और संग्रह करते हैं और यह दुष्चक्र चलता ही रहता है. न जाने कब जीवन की शाम आ जाये, आत्मज्ञान ही हमें इस अंधी दौड़ से मुक्त कर सकता है.
ताजगी देता हुआ आलेख ...
ReplyDeleteनए वर्ष की शुभ मंगल कामनाएं ...!!
नववर्ष में यह आत्मज्ञान हो जाय तो कितना भला है!
ReplyDeleteकुछ पल इन खयालों में जी जाय तो कितना भला है!
विश्लेषण परक गांठ बाँध लेने लायक बातें जीवन को सार्थक बनाने की समझ से ही पैदा होतीं हैं .बधाई नव वर्ष की .
ReplyDeleteमुक्त भाव से जीना ही सही मायनों में जीवन है मगर यह इतना आसान भी नहीं !
ReplyDeleteयही समझ सच्ची मुक्ति है । नववर्ष आपको सभी तरह से सुखमय हो
ReplyDeleteमन में आत्मज्ञान की तीव्र इच्छा होना ही सबसे कठिन है उसके बाद तो अस्तित्त्व सब सम्भाल लेता है...अनुपमा जी, देवेन्द्र जी, वाणी जी, वीरू भाई और गिरिजाजी आप सभी का स्वागत और आभार!
ReplyDeleteअनीता जी ,
ReplyDeleteजीवन में ताजगी चाहिए तो जो कुछ हमें मिला है उसे बाँटना चाहिए. तितलियाँ, फूल, खुशबू और प्रेम को तिजोरी में नहीं रख सकते. बहता हुआ पानी ही स्वच्छ रहता है.
सटीक ... यही तो मूल है ..इसे ही समझने में जिंदगियां बीत जाती हैं... बहना ..सिर्फ बहना...
"न जाने कब जीवन की शाम आ जाये, आत्मज्ञान ही हमें इस अंधी दौड़ से मुक्त कर सकता है."
ReplyDeleteसचमुच, क्या पता कब जीवन की शाम आ जाये!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
आत्मज्ञान देती रचना बहुत सुंदर,
ReplyDeleteनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,..
आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
Bahut hi parernadayak rachna.....
ReplyDeleteNaya saal lakho kushiyan laye aapke leeye.
बहुत ज्ञानप्रद प्रस्तुति..आभार
ReplyDelete