सितम्बर २००२
हम चेतन हैं, पर जड़ की ओर हमारा झुकाव है. जब हम अपनी चेतना को परम चेतना के साथ जोड़ते हैं तो सारे कर्म योगमय हो जाते हैं, अन्यथा कर्म बंधन में डालते हैं. कृष्ण कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को न कुछ पाने की तृष्णा सताती है न कुछ खोने का भय, न उससे किसी को भय होता है न उसे ही किसी से भय रहता है. तब तो सारी सृष्टि हमें मित्रवत ही प्रतीत होगी. जहाँ कहीं भी शुभ है वहीं दृष्टि जायेगी, दोषों पर यदि दृष्टि जाये भी तो कटुता का भाव उदय न होगा.. संसार को उसके दोषों व गुणों सहित हम अपना लेने में समर्थ होंगे.
समग्रता को देखना है ...!!सार्थक आलेख ...अथक प्रयास करते हुए मन को बार बार ...नकारात्मक भावों से हटाना पड़ता है ....!!
ReplyDeleteबेहद बेहतरीन पोस्ट है मैडम आपकी
ReplyDeleteधन्यवाद
http://vicharbodh.blogspot.com
अनुपमा जी, व संजू जी आपका आभार!
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