जब हम कोई कार्य बिना किसी आकांक्षा के करते हैं, हमें कर्म करने मात्र में आनंद मिलता है, हमारा मन शुद्ध होता जाता है. शुद्ध मन में शांति का वास होता है और शांति से ही सुख मिलता है. सुख यानि मोक्ष या निर्वाण इसी जन्म में मिल जाता है. यही ब्राह्मी स्थिति है, और एक बार इस स्थिति में टिकना आ जाता है तो साधक कभी इससे च्युत नहीं होता. ईश्वर अब उसका आधार बन जाते हैं. ईश्वर अर्थात अखंड सात्विक आनंद. इसी को कृष्ण कर्मयोग कहते हैं, उनकी कृपा से ही यह निष्कामता आती है. फल की अपेक्षा जब तक रहेगी तब तक उनकी ओर नजर न जायेगी. ईश्वर की निकटता का अनुभव निर्दोष भाव से अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए उसके पास जाकर हो सकता है. प्रकृति के पाश से, तीन गुणों के बंधन से, माया के जाल से अर्थात दुःख से यदि बचना है तो उनकी शरण में जाना होगा, अर्थात मन में सम भाव रखकर स्वीकार भाव से जीना सीखना होगा.
कर्म की गति बनी रहे ...
ReplyDeleteKARM AUR MOKSH KI BHAWANA KO SAMANTAR ME LE CHALANA BAHUT HI DROOH HAI ....MOKSH KI BHAWNA SE KIYE GAYE KARM ME MOKSH KA SWARTH VIRAKT NAHI HO PATA AUR SADHANA BHATAK JATI HAI ......FILHAL SUNDAR POST .....BADHAI ANITA JI .
ReplyDeleteall time great lines like holy RIVER GANGA
ReplyDeleteTHANKS