Tuesday, January 3, 2012

पूरा प्रभु आराधिये



सितम्बर २००२ 
आकाश पर कभी घने बादल छा जाते हैं, रिमझिम फुहार और ठंडी हवा के झोंके तन-मन को सिहरा देते हैं. कभी चमचमाती हुई तेज धूप सारे माहौल को रोशन कर देती है. ऐसे ही जीवन भी हर पल रंग बदलता है. कभी मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं फिर साक्षी भाव से देखते रहें तो चुपचाप चली भी जाती हैं. ऐसे ही सुख भी आता है तो टिकता थोड़े न है, चला जाता है. हम वहीं के वहीं रह जाते हैं, अपने आप में पूर्ण, न तकलीफ आने से हमारा कुछ घटता है न सुख आने से कुछ बढ़ता है. मान हो तब भी कुछ नहीं बढ़ता अपमान हो तब भी कुछ नहीं घटता. हम पूरे हैं पूरे ही रहते हैं हर क्षण, उस पूर्ण परमात्मा की तरह. 

4 comments:

  1. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।

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  2. हम वहीं के वहीं रह जाते हैं, अपने आप में पूर्ण, न तकलीफ आने से हमारा कुछ घटता है न सुख आने से कुछ बढ़ता है....

    आप की रचनाओं से बहुत कुछ बढ़ता है बहुत कुछ जुड़ता है ...कभी कोई कुहासा छाता भी है तो छट जाता है
    कृतज्ञ हूँ आपके प्रति !

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