सितम्बर २००२
जो परमात्मा का प्रिय भक्त होता है वह अपने अंतर में विश्वास की ज्योति जला कर रखता है, उसी की लौ के सहारे-सहारे वह अंदर बाहर दोनों ही जगह उजाला पाता है. विश्वास तभी गहरा होता है जब अनुभूति हो जाये अनुभव साधना से ही आता है, अनुभव के बाद कृतज्ञता से मन भर जाता है, और हम जीवन निश्चिंत होकर एक-एक क्षण का आनंद लेते हुए जीते हैं. साधना की अग्नि में तपकर ही हम अपनी सम्भावनाओं को तलाश सकते हैं. देह और मन हमें साधन रूप में मिले हैं, जिन्हें स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है, ताकि आत्मा स्वयं को प्रकाशित कर सके, वही तो परमात्मा का प्रतिबिम्ब है जो मन के दर्पण में झलकना चाहता है.
अनीता जी आपने सही फ़रमाया हैं...
ReplyDeleteमैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....