परमात्मा हमें हर पल दे रहा है. उसके प्रति कृतज्ञता तो हमें जाहिर करनी ही चाहिए, अन्यथा हम केवल उनसे लेते ही लेते रहेंगे. उसके नाम का स्मरण और उच्चारण करने से भी यह कृतज्ञता व्यक्त हो सकती है, उस समय हम उसी के सान्निध्य में होते हैं. क्योंकि ईश्वर और उसका नाम एक ही हैं. सच्ची प्रार्थना भी वही है जिसमें यही चाह हो कि मन में निज स्वार्थ की कोई चाह न उठे. उसके प्रति प्रेम मन में बढ़ता रहे और बढ़ते-बढ़ते इतना विशाल रूप ले ले कि सभी प्राणी उसकी गिरफ्त में आ जाएँ. जब सारे प्राणियों के अंतर में वही परम पिता दिखाई देने लगें. तभी समझना चाहिए कि भक्ति का उदय हृदय में हुआ है.
उसके प्रति प्रेम मन में बढ़ता रहे और बढ़ते-बढ़ते इतना विशाल रूप ले ले कि सभी प्राणी उसकी गिरफ्त में आ जाएँ. जब सारे प्राणियों के अंतर में वही परम पिता दिखाई देने लगें. तभी समझना चाहिए कि भक्ति का उदय हृदय में हुआ है....
ReplyDeleteहम्म दीदी पहले मन निर्मल होगा ...निर्मल मन में ही तो ऐसे प्रेम का अंकुर उगेगा न | एक बार ये अंकुर उग जाए ..और फिर अहं के तिरोहित होने कि प्रक्रिया शुरू हो जाये .. तो वो अपने आप खींच लेते हैं अपनी तरफ ...फिर आप जो जो बताती हैं वो सारी अवस्थाएं एक के बाद एक अपने आप घटित होने लगती हैं.
yahi asli bhakti hai
ReplyDeleteअनिता मैडम,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..... http://jeevanvichar.blogspot.com
परमात्मा हमें हर पल दे रहा है. उसके प्रति कृतज्ञता तो हमें जाहिर करनी ही चाहिए....in panktiyon ko padhne bhar se hi jaane kyun hamesha ashaant rahne wala man shaant sa mahsoos ho raha hai....dhanyavaad .
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 7/1/2012 को होगी । कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें। आभार.
ReplyDeleteकार चलाने के लिए ड्राईवर की जरुरत पड़ती है ! भक्ति यही है ! अनुशाशन ही शक्ति है !
ReplyDeleteसुन्दर विचार....
ReplyDeleteसादर.
बहुत सुन्दर बात कही है ... हर पल इश्वर हमें देता है लेकिन हम कृतज्ञ होने के बजाये शिकायत ही करते रहते हैं .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसच है, बड़ा ही स्वार्थी और लालची होता है मानव मन...
सादर.
sacchi baat.....
ReplyDeleteसुन्दर भावों के लिए बधाई
ReplyDeleteकहने से बड़ी बात लिखना
लिखने से बड़ी बात सुनना
और सुनने से बड़ी बात गुनना
गहन चिंतन