Wednesday, January 18, 2012

सत्य और असत्य


अक्तूबर २००२ 
सत्य एक है, सत्य ही धर्म है, सत्य ही वह पथ है जिस पर चल कर सत्य का अनुभव होता है. हमारे भीतर जो हलचल असत्य बोलने पर होती है वह सत्य की ही खबर देती है. कितनी ही बार हम बिना झिझके असत्य बोल जाते हैं, कभी सहज भाव से कभी विनोद में ही, कितना भी निर्दोष हो हमारा असत्य सत्य पर ही एक आवरण डाल रहा होता है. जितना-जितना हम इस बात को स्वीकार करते हैं, सत्य भी स्पष्ट होता जाता है और एक दिन असत्य झर जाता है. साक्षी भाव जब सधता है तब जो भी भीतर घटता हो उसे सहज भाव से देखते हुए ही हम विकार से मुक्त हो जाते हैं. सजग होकर आखिर कितनी देर तक हम पथ से दूर रह सकते हैं.

2 comments:

  1. kitna bhi asatya bole kintu satya aur nikhar jata hai ant me satya ki hi jeet hoti hai.bahut achcha vishleshan.

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  2. राजेश जी, आपका स्वागत व आभार!

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