नवंबर २००२
रामरस के बिना हृदय की तृष्णा नहीं मिटती. परम प्रेम हमारा स्वाभाविक गुण है, उससे च्युत होकर हम संसार में आसक्त होते हैं. कृष्ण का सौंदर्य, शिव की सौम्यता, और राम का रस जिसे मिला हो वही धनवान है. जिस प्रकार धरती में सभी फल, फूल व वनस्पतियों का रस, गंध व रूप छिपा है वैसे ही उस परमात्मा में सभी सदगुण, प्रेम, बल, ओज, आनंद व ज्ञान छिपा है, संसार में जो कुछ भी शुभ है वह उस में है तो यदि हम स्वयं को उससे जोड़ते हैं, प्रेम का संबंध बनाते हैं तो वह हमें इस शुभ से मालामाल कर देता है, दुःख हमसे स्वयं ही दूर भागता है, मन स्थिर होता है. धीरे धीरे हृदय समाधिस्थ होते हैं. एक बार उसकी ओर यात्रा शुरू कर दी हो तो पीछे लौटना नहीं होता...दिव्य आनंद हमारे साथ होता है और तब यह जीवन एक उत्सव बन जाता है.
बहुत सार्थक कथन...आभार
ReplyDeleteपरम प्रेम हमारा स्वाभाविक गुण है,
ReplyDeleteadbhut aur sundar lekh
aabhar
एक बार उसकी ओर यात्रा शुरू कर दी हो तो पीछे लौटना नहीं होता...दिव्य आनंद हमारे साथ होता है और तब यह जीवन एक उत्सव बन जाता है.
ReplyDeletebahut sunder ....
abhar.