Thursday, January 5, 2012

ज्ञान की ज्योति


परम का ज्ञान हमारे जीवन की नौका का लंगर खोल कर उसे दिशा प्रदान करता है. कर्मों को शुद्ध करता है. हृदय में सत्य के प्रति प्रेम हो और अधरों पर भक्ति के नगमे तो दुनिया कितनी हसीन हो जाती है. स्वयं को भुला दें अहं त्याग दें तो अपना आप कितना हल्का लगता है. अहं ही तो हमें भारी बनाता है वरना तो हम फूल से भी हल्के हैं. उसने हमारी सारी आवश्कताओं की व्यवस्था पहले से ही कर द है. वह हर क्षण हम पर नजर रखे हुए है. हम ‘मैं’ की रट लगा कर व्यर्थ ही खुद को विषाद में डाल लेते हैं. यह दुनिया भी तो उसी की है. अन्यों के दोषों पर निगाह नहीं जाती जब सारे अपने ही लगते हैं. एक बार जहाँ उजाला हो जाये वहाँ अंधकार कैसे टिक सकता है.  

3 comments:

  1. सुन्दर विचार। सही कहा।आभार।

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  2. स्वयं को भुला दें अहं त्याग दें तो अपना आप कितना हल्का लगता है.
    स्तीमिंग हॉट गरम इडली फूल सी हलकी होती है एहम शून्य मस्त व्यक्ति सी और ठंडी इडली एक दम से पत्थर किसी एहंकारी सी .अच्छी प्रेरक निर्मल पोस्ट .

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  3. उसने हमारी सारी आवश्कताओं की व्यवस्था पहले से ही कर दी है. वह हर क्षण हम पर नजर रखे हुए है. हम ‘मैं’ की रट लगा कर व्यर्थ ही खुद को विषाद में डाल लेते हैं.

    आपको पता है दी ...वो हमें किसी न किसी रूप में आकर राह भी दिखाता है हम अगर सजग है और मैं में लिपटे हुए नहीं हैं तो तुरंत समझ लेते हैं उसके संकेतों को !

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