Sunday, January 15, 2012

ऐसी बानी बोलिए




साधना में वाणी के संयम पर बहुत बल दिया गया है. वाणी सत्य तो हो ही, प्रिय और हितकारी भी हो, शांति प्रदान करने वाली हो. स्वल्प निंदा भी हमें पथ से भटका सकती है. कड़वाहट यदि बाहर आ  रही है तो इसका अर्थ है कि भीतर अभी कड़वाहट शेष है, जब भीतर उस परमात्मा को बैठाया है तो विकारों को आश्रय देना छोड़ना होगा. कल्याणमयी वाणी, प्रसन्न वदन, शक्ति और शांति से भरा मन ये इस पथ पर हमारे सहायक हैं. मुख से वचन तभी निकलें जब आवश्यक हों व उस वक्त मन, आत्मा व वाणी एक हों भीतर बाहर एक, क्योंकि वह परम तो हर जगह है जितना बाहर उतना ही भीतर भी. हमारे चारों ओर का वातावरण वाणी से ही सजाया जा सकता है, अन्यथा मौन ही सधे.

8 comments:

  1. वाणी की मिठास और वाणी का तीखापन ही जोड़ता और तोड़ता है ...

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  2. bahut sundar ...sach hai yahi vaani hai jo ....shatru ko mitra aur mitra ko shatru me badal deti hai

    bahut hi sundar lekh !!!

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  3. वाणी पर नियंत्रण सबसे बड़ी साधना है...

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  4. कड़वाहट यदि बाहर आ रही है तो इसका अर्थ है कि भीतर अभी कड़वाहट शेष है, जब भीतर उस परमात्मा को बैठाया है तो विकारों को आश्रय देना छोड़ना होगा.

    वाह अद्भुत और प्रेरक !

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  5. मधुर वचन से जात मिट उत्तम जन अभिमान ,तनिक सीट जल सों मिटत,जैसे दूध उफान .सुन्दर विचार सरणी .

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  6. बहुत ही सुन्दर भाव भरा सर्वकालिक लेखन

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  7. ak vaicharik urcha ko kendrit karati hui prastuti ...badhai Anita ji

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  8. चारों ओर का वातावरण वाणी से ही सजाया जा सकता है...........sahmat hun.

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