अगस्त २००२
जीवन के एक पक्ष में जब तन्मयता आती है तो उसका प्रभाव अन्य पक्षों पर पड़ना स्वभाविक है. लिखना तभी संभव है जब मन किसी एक विचार पर टिके. जब कोई उद्देश्य लेकर हम काम करते हैं तो मन को एक आधार मिल जाता है, तन को नियम. आत्मा को उसकी पहचान मिलने का सिलसिला शुरू हो जाता है. हम पहले से कहीं ज्यादा खुश रहते हैं, ज्यादा स्पष्ट सोच सकते हैं. वस्तुओं को उनके वास्तविक रूप में देखने लगते हैं. अन्यों के प्रति हमारा व्यवहार अधिक स्नेहपूर्ण हो जाता है. क्रोध अजनबी हो जाता है. ज्ञान भीतर टिकने लगता है. इस सब के पीछे परम की अहैतुकी कृपा ही एक मात्र कारण है ऐसा कृतज्ञता का भाव भी जन्म लेता है. धर्म के सिद्धांत जो पहले मात्र पढ़ने की वस्तु थे, जीवन में उतरने लगते हैं. धर्म वही तो है जो धारण किया जाये. प्रेम का अविरल स्रोत हमारे भीतर है, वह सूखने न पाए इसके लिये भी तन्मयता जरूरी है.
लिखना तभी संभव है जब मन किसी एक विचार पर टिके... tanmayta to zaruri hai hi
ReplyDelete.अच्छी प्रस्तुति .अति सुन्दर निर्मल विचार सरणी बहा दी आपने .डोमिनो प्रभाव होता है तन्मयता का एक अच्छी चीज़ दूसरी अच्छी चीज़ों को जन्म देती है .
ReplyDeleteजब कोई उद्देश्य लेकर हम काम करते हैं तो मन को एक आधार मिल जाता है, तन को नियम. आत्मा को उसकी पहचान मिलने का सिलसिला शुरू हो जाता है. हम पहले से कहीं ज्यादा खुश रहते हैं, ज्यादा स्पष्ट सोच सकते हैं. वस्तुओं को उनके वास्तविक रूप में देखने लगते हैं. अन्यों के प्रति हमारा व्यवहार अधिक स्नेहपूर्ण हो जाता है.
ReplyDeletesateek....
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteशांत चित्त और तन्मयता पाना भी ईश्वर कृपा से ही संभव है..
सादर.
रश्मि जी, मुदिता जी, वीरू भाई और विद्या जी आप सभी का आभार !
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