पत्रं पुष्पं फलं तोयं......श्रद्धा रूपी पत्र तथा मन रूपी पुष्प, हमारे कर्मों का फल रूपी फल और अपने अंतर का प्रेम भरा अश्रुजल यही तो हमें कृष्ण को अर्पित करना है. कृष्ण प्रेम का दूसरा नाम है, उसे प्रेम करो तो वह हजार गुणा करके लौटाता है. उसकी ओर जो एक बार चल दे उसे वह भटकने नहीं देता, किसी न किसी तरह अपनी ओर बुला ही लेता है. उसके सम्मुख जाते ही अपना सब कुछ उसे अर्पित करने का मन होता है बल्कि अपना कुछ है ही नहीं यह भाव उदित होता है. और तब यह भी पता चलता है कि हमारे भीतर ही ज्ञान है, प्रेम है, शक्ति है, ऊर्जा है, साहस है....सब कुछ अकारण है जैसे ईश्वर के पास इन सबका भंडार है...अकारण, वह लुटा रहा है. वही भीतर से सामर्थ्य देता है, प्रेरणा देता है, निर्देश देता है. जीवन तब उत्सव बन जाता है.
जै श्री कृष्ण।
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति ।
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, सूत्रधार जी, आभार !
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