सितम्बर २००२
अंतर्मुखी होकर, ध्यानस्थ होकर भीतर जो भी दिखे वह सहज ज्ञान है. भगवद्ज्ञान कहीं बाहर से मिलने वाला नहीं है बल्कि इसी सहज ज्ञान का आश्रय लेकर पाया जा सकता है. परमात्म प्राप्ति का या आनंद प्राप्ति का या सत्य प्राप्ति का निश्चय दृढ़ हो तो जीवन को एक ऐसी दिशा मिल जाती है जो ऊर्जा को नष्ट नहीं होने देती. कुछ क्षणों के लिये मन अशांत होता भी है तो झट भीतर कोई कहता है जो हम देते हैं वही पूरे ब्याज के साथ हमें मिलता है. प्रेम दो तो प्रेम मिलेगा, आनंद देने पर आनंद और विरोध करने पर विरोध ही हाथ आयेगा. संसार चाहे कितना भी मिल जाये ज्ञान के बिना दुखमय ही रहेगा. सजगता के साथ जियें तो यह अनुकूल हो जाता है, ज्ञान के बिना हम एक क्षण के लिये भी सुरक्षित नहीं हैं. कर्म बंधन से मुक्ति चाहिए तो हमारे सारे कर्म, विचार, वाणी परमात्मा से युक्त होने चाहिए, अर्थात सजगता पूर्ण. योग भी तभी सधेगा जब लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति का हो, क्योंकि अन्य चाह न रहने से मन सहज विश्राम में रहता है. इसी में हमारा कल्याण है और हमारे इर्द गिर्द के वातावरण का भी इसी में कल्याण है.
"सजगता के साथ जियें तो यह अनुकूल हो जाता है"sach hai .
ReplyDeleteकर्म बंधन से मुक्ति चाहिए तो हमारे सारे कर्म, विचार, वाणी परमात्मा से युक्त होने चाहिए, अर्थात सजगता पूर्ण.
ReplyDelete.....बहुत सच कहा है...आभार