२१ जनवरी २०१७
इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति तीनों हमारे पास हैं. सत, रज और तम तीनों गुण भी मन व बुद्धि, व संस्कारों में हैं में हैं. मन ही इच्छा शक्ति को धारण करता है और सदा संकल्प-विकल्प उठाता रहता है. सात्विक मन में ही शुद्ध संकल्प जगता है. बुद्धि यदि सात्विक होगी तो ज्ञान शक्ति भी शुद्ध होगी. जैसा ज्ञान होगा वैसे ही संकल्प उठेंगे फिर वैसे ही कर्म होंगे, जब तीनों शक्तियाँ एक रस होंगी तभी जीवन में सुख और संतोष बढ़ेगा. इच्छा यदि अपरिमित है, ज्ञान उसके अनूरूप नहीं है और कर्मशीलता भी नहीं सधती तो भीतर समरसता कैसे हो सकती है. इसीलिए संत कहते हैं, साधक मनसा, वाचा, कर्मणा सदा एकरस होकर रहे, जैसा सोचे, वैसा ही बोले, वैसा ही उसका कृत्य भी हो.
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