२ जनवरी २०१६
जीवन सरल से सरल भी हो सकता है और कठिन से कठिन भी. हमारे सामने यह एक कोरे कागज की तरह आता है, जिस पर सवाल भी हम खुद लिखते हैं और जाहिर है जवाब भी हमें ही लिखने हैं. यदि कोई चाहे तो सवालों को इतना कठिन बनाता जाये कि स्वयं ही उनमें उलझ जाये और यदि कोई चाहे तो बच्चों की पहेली जैसे उसे खेल बनाकर हल करने का आनन्द लेता रहे. हमारे पास समय है, ऊर्जा है, देह रूपी उपकरण हैं, और बुद्धि रूपी शक्ति है, जिनसे हम इस जीवनलीला का आनन्द लेते हैं. संत कहते हैं इस ऊर्जा का सदुपयोग होगा तो इसकी भरपाई सहज ही होती रहेगी और यदि इसका उपयोग नहीं किया गया तो यह ऊर्जा ही दुःख का कारण भी बन सकती है अथवा तो जीवन में एकरसता का.
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