२७ जनवरी २०१७
जगत प्रतिपल बदल रहा है. देह, मन, बुद्धि सभी कुछ तो प्रतिक्षण बदल रहे हैं. जब तक हम अपने भीतर एक ऐसी अवस्था का अनुभव नहीं कर लेते जो सदा एक सी रहती है, एक रस है, शांत है अचल है, हमारी बुद्धि और मन विश्राम को नहीं पा सकते. एक बार बुद्धि जब आत्मा के सान्निध्य का अनुभव कर लेती है तो उसकी दौड़ समाप्त हो जाती है. श्वासों के नियमन से अर्थात प्राणायाम के नियमित अभ्यास से जब मन ठहरने लगता है तो उसकी झलक मिलती है. साधक को यह अनुभव होता है कि उसके भीतर एक चेतना भी है जो प्रेममयी है. मन बार-बार उस का संग पाना चाहता है और एक दिन उसे व्यवहार काल में भी भीतर एक सघन चेतना का अनुभव होने लगता है. तब संसार की कोई घटना उसके भीतर की शांति को भंग नहीं कर सकती क्योंकि चेतना स्वयं पर ही निर्भर है, वह स्वतंत्र है.
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