२४ जनवरी २०१७
जीवन का निर्माण अंधकार में आरम्भ होता है, एक बीज को धरती के नीचे बोया जाता है और एक दिन वह वृक्ष का रूप ले लेता है, जड़ों के रूप में उसका स्रोत छिपा ही रहता है. जड़ों की भी यदि खोद के निकाल लें तो जीवन सूख जाता है. उन्हें वहीँ पोषित करना होता है. इसी तरह हमारा मूल भी भीतर छिपा है, जिसे वहीं पोषित करना है, मूल तक पहुंचने का नाम ही ध्यान है. देह को स्थिर करके पहले मन को देखना फिर मन को शांत करते हुए उस बीज तक पहुंचना जो जीवन का स्रोत है, यह पहला चरण है, फिर उस स्रोत को परम से जोड़ना जिससे वह पोषित हो सके दूसरा सोपान है. प्रार्थना भी ध्यान का विकल्प हो सकती है और नाम जप भी, अपनी-अपनी रूचि के अनुसार कोई भी मार्ग अपनाकर हम अपने मूल को सींच सकते हैं.
चाहे ध्यान हो या जप दोनों में सफलता निश्चित है, आपने बिल्कुल सही कहा है ।
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