६ जनवरी २०१७
जीवन कितना अनोखा है. जब हम पल भर भी रुककर विस्तीर्ण गगन पर नजर डालते हैं या उगते हुए सूर्य की किरणों से चमक रही ओस की बूंदों पर हमारी दृष्टि टिकती है तो प्रकृति की भव्यता तत्क्षण मन्त्र मुग्ध कर लेती है. जब रोजमर्रा की बातों में ही इतना खो जाते हैं कि उषा की लाली और संध्या की सुरम्यता हमें छू ही नहीं पाती तो जीवन में एक नीरसता भर जाती है. हमारा मस्तिष्क कभी अति भावुक हो उठता है तो कभी बिलकुल रूखा-सूखा, दोनों ही व्यवहार परमात्मा से दूर ले जाते हैं. जब जीवन में एक समता का उदय होता है, जीवन एक मधुर संगीत से भर उठता है. भीतर रहते हुए बाहर व्यवहार करना हम सीख जाते हैं. जैसे कोई दीप देहरी पर रखा हो तो वह अंदर बहर दोनों को प्रकाशित करता है ऐसा ही मन जब जगत में रहते हुए भी अंतर से जुड़ा रहता है तो चारों ओर का सौन्दर्य उसे हर क्षण अभिभूत किये रहता है.
सुन्दर । जीवन के रंग अनेक।
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