२ फरवरी २०१७
स्वयं को जाने बिना हम यह उम्मीद करते हैं कि दूसरे हमें जानें, स्वयं को समझे बिना हम दूसरों को समझने की कोशिश करते हैं. दोनों ही बार निराशा ही मिलने वाली है. इस दुनिया में हमें जो कुछ दिखाई दे रहा है वह स्वयं के दर्पण पर प्रतिबिम्बित होकर ही दिखाई दे सकता है. स्वयं में यदि कहीं कोई उलझाव है तो प्रतिबिम्ब भी स्पष्ट नहीं बन सकता. साधना का एकमात्र उद्देश्य यही है कि हम स्वयं को भीतर बाहर अच्छी तरह परख लें. किस बात से हम दुःख बनाते हैं और किस बात से सुख, सुख-दुःख का निर्माता हमारा स्वयं का मन ही है, यह बात जब अनुभव के तौर पर नजर आने लगती है तो तत्क्षण हम दुःख के पार हो जाते हैं.
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