२५ फरवरी २०१७
प्रकृति से हम जितना जुड़े होते हैं, विस्मय हमें निरंतर आह्लादित किये रहता है. प्रकृति से कटकर कंक्रीट की दुनिया में रहने वाले नन्हे बीज से अंकुरित होते गेहूँ के पौधे को बालियों से भरते भी नहीं देख पाते और उनके लिए अन्न के लिए सम्मान की भावना भी नहीं उपजती. सृष्टि एक रहस्य से भरी है, पर विज्ञान पढने वाले के लिए जैसे हर रहस्य का उत्तर मानो पुस्तकों में बंद है. नीले आकाश को यदि एक बार भर नजर कोई देखे तो मन खो जाता है, बुद्धि शांत हो जाती है. अनंत है जिसका विस्तार उसके बारे में कोई कहे भी तो क्या..संतों के पास जाकर भी मन ठहर जाता है, वे भी एक रहस्य ही जान पड़ते हैं. ध्यान उसी विस्मय में डूबने का ही तो नाम है.
प्रकृति के रहस्य को समझना बहुत आसान तो नहीं है, लेकिन हर पल एक चमत्कारिक घटना होती रहती है. जीवन एक विस्मय यात्रा है. मुझे निजी तौर पर कई ऐसी चीजों की आत्मिक अनूभूति हुई है कि बस खामोश रहने को मन करता है. यही लगता है कि किसी अनंत यात्रा में हमेशा के लिए लीन हो जाऊं।
ReplyDeleteआपसे ऐसे ही पोस्ट की उम्मीद रहती है. एक अर्जी है. अन्यथा नहीं लेंगी. अगर सम्भव हो तो सूक्ष्म तरीके से किये गए विश्लेषण को थोड़ा और स्पेस दें.
सादर...
सही कहा है अपने राहुल जी, जीवन एक विस्मय यात्रा है..जिसने यह अनुभव कर लिया उसके साथ प्रकृति ऐसे -ऐसे अनुभव बांटने लगती है जिन्हें शब्दों में कहा भी नहीं जा सकता. कथ्य को विस्तार देने के आपके अनुरोध को पूरा करने का हर सम्भव प्रयास रहेगा.
Deleteभगवान की रचना अद्भुत है, जिसमें आनन्द भरा हुआ है । सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार शकुंतला जी !
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